चलना हमारा काम है भावार्थ/व्याख्या [explanation] │ Sahitya Sagar - ICSE

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गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।

भावार्थ – श्री शिवमंगल सिंह 'सुमन' द्वारा रचित 'चलना हमारा काम है' शीर्षक कविता से ली गई उपर्युक्त पंक्तियों में कवि मनुष्य को प्रेरणा दे रहा है कि उसे जीवन में निरंतर सक्रिय और गतिशील रहना चाहिए। कवि कहते हैं कि मानव असीम शक्ति से संपन्न प्राणी है, उसमें अद्भुत क्षमताएँ हैं जिसके कारण वह बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने की शक्ति रखता है इसलिए कवि कहता है कि है मनुष्य जब तेरे पैरों में अद्भुत गति एवं शक्ति विद्यमान है, तो फिर दर-दर खड़ा होने की क्या आवश्यकता है? कवि अभी अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाया है, अभी उसके सामने लंबा रास्ता पड़ा है। जब तक वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच जाता तब तक वह विश्राम नहीं करेगा और चलता रहेगा। 

विशेष: कवि मनुष्य को प्रेरणा देते हुए कहता है कि तेरे चरण असीम शक्ति एवं गति से युक्त हैं इसलिए अपनी मंजिल को पाने के लिए सतत प्रयास करता रह और दर-दर खड़ा होने के बजाय निरंतर चुनौतियों का सामना करते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ता रह।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया.........................चलना हमारा काम है

भावार्थ - श्री शिवमंगल सिंह 'सुमन' कहते हैं कि जीवन-पथ पर चलते हुए अनेक राही मिलते हैं। उनसे अपने सुख-दुख को बाँट लेने पर मन का बोझ कुछ हलका हो जाता है। कवि अपनी प्रेमिका के संबंध में कहता है कि अच्छा हुआ जो जीवन के मार्ग पर चलते हुए तुम्हारा सान्निध्य प्राप्त हो गया। तुम्हारे साथ रहने पर कुछ समय आसानी से बीत गया और कुछ रास्ता आसानी से कट गया। कवि कहता है कि इस यह पर चलते हुए मैं अपना परिचय किस प्रकार दूँ? मेरा परिचय तो केवल इतना है कि मैं जीवन-पथ का एक पथिक मात्र हूँ। हमारा काम तो अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहना है।

विशेष:  कवि मनुष्य को प्रेरणा देता है कि जीवन-पथ पर बढ़ते हुए उसे अनेक साथी मिलते हैं, पर उसका कर्तव्य है कि वह निरंतर इस पथ पर अग्रसर रहे।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।

जीवन अपूर्ण लिए हुए.........................चलना हमारा काम है

भावार्थ - 'सुमन' जी कहते हैं कि मानव जीवन अपूर्ण है। इसमें कभी असफलता तो कभी सफलता मिलती है, कभी सुख तथा कभी दुख झेलना पड़ता है, कभी आशा तो कभी निराशा मिलती है। मनुष्य का कर्त्तव्य है कि इससे न घबराए और साहस एवं धैर्य न छोड़े। भाव यह है कि असफलता, निराशा और दुखों का सामना होने पर हिम्मत न छोड़े, क्योंकि यह स्थिति सदा नहीं रहती। दुःख के बाद सुख, निराशा के बाद आशा और असफलता के बाद सफलता अवश्य मिलती है, अतः मनुष्य के जीवन की गति कभी रुकनी नहीं चाहिए, क्योंकि गति ही जीवन है; अतः हमें अपने लक्ष्य की ओर निरंतर गतिशील बने रहना चाहिए।

विशेष: मनुष्य को चाहिए कि सुख-दुःख, सफलता-असफलता आदि उसकी गति को न रोक पाएँ तथा वह निरंतर जीवन-पथ पर गतिशील बना रहे, क्योंकि जीवन में कोई स्थिति सदा के लिए नहीं रहती।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।

इस विशद विश्व-प्रवाह में.........................चलना हमारा काम है

भावार्थ - कवि कहता है कि यह संसार बहुत बड़ा है। इस संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो सुख-दुख, आशा-निराशा तथा सफलता-असफलता से प्रभावित न हुआ हो। भाव यह है कि इस संसार में सभी को कभी-न-कभी सुख-दुख सहन करने पड़ते हैं। कभी किसी के जीवन में दुख, निराशा और असफलता सदा के लिए नहीं रहते और साथ ही सदा के लिए सुख भी किसी को प्राप्त नहीं होते। इन दोनों का क्रम समान रूप से चलता रहता है। कवि अपने आप को सांत्वना देता हुआ कहता है कि वह क्यों व्यर्थ में हो स्वयं को अभागा कहता फिरे ? कवि प्रेरणा दे रहा है कि जीवन पथ की बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हुए धैर्य एवं साहस से आगे बढ़ते रहना चाहिए।

विशेष: कवि का संकेत ऐसे लोगों की ओर है जो भाग्यवादी हैं तथा दुख या असफलता का सामना होने पर यह कहा करते हैं कि मेरा भाग्य खराब है। कवि के अनुसार ऐसे लोग नहीं जानते कि सुख और दुख दोनों जीवन के अनिवार्य अंग हैं। इसीलिए दुखों से विचलित होना या अपने भाग्य को दोष देना उचित नहीं होता।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

मैं पूर्णता की खोज में.........................चलना हमारा काम है

भावार्थ - कवि कहता है कि वह पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता रहा, परंतु वह जिस ओर भी कदम बढ़ाता, उसी ओर कोई-न-कोई रुकावट आकर खड़ी हो जाती थी। इन रुकावटों के कारण वह पूर्णता प्राप्त न कर सका, परंतु वह निराश नहीं हुआ। वह कर्म-पथ पर बढ़ता रहा, क्योंकि इस पथ पर बढ़ते रहने का नाम ही जीवन है।

विशेष: कवि का आशय है कि मानव-जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा, सफलता-असफलता आदि से भरा है, फिर भी कुछ लोग पूर्णता की खोज में दर-दर भटकते हैं। व्यक्ति का कर्तव्य है कि उसे दुख, निराशा और असफलता से निराश होकर बैठ नहीं जाना चाहिए बल्कि निरंतर गतिशील बने रहना चाहिए तथा दुखों की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मानव का यही कर्तव्य है कि वह बाधाओं एवं दुखों को सहन करता हुआ जीवन-पथ पर अबाध गति से बढ़ता रहे।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।

कुछ साथ में चलते रहे.........................चलना हमारा काम है

भावार्थ - कवि कहता है कि जीवन-पथ पर बढ़ते हुए उसे अनेक साथी मिले। उसे कुछ ऐसे साथी मिले जिन्होंने बीच में ही उसका साथ छोड़ दिया, तो कुछ निराश होकर लौट गए परंतु ऐसा होने पर भी उसके जीवन की गति नहीं रुकी, वह अनवरत रूप से जीवन-पथ पर अग्रसर होता रहा। कवि कहता है कि जिन साथियों ने उसका साथ बीच में ही छोड़ दिया या वे बीच में ही गिर गए, उससे निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जीवन में सफलता केवल उसी व्यक्ति को मिलती है जो इस प्रकार के संकटों तथा दुखों में भी दृढ़ता से खड़ा रहे, आगे बढ़ता रहे और इन संकटों से निराश न हो।

विशेष: कवि का आशय है कि जीवन में साथी आते-जाते रहते हैं। उनमें से कुछ ऐसे हैं जो बीच में साथ छोड़ देते हैं, तो कुछ बीच में ही समाप्त हो जाते हैं, परंतु जीवन में सफलता केवल उन्हें ही प्राप्त होती है जो बीच में साथ छोड़ देने वाले साथियों की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते जाते हैं।