Sur k pad poem explanation (भावार्थ)│Sahitya Sagar - ICSE


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जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥

जसोदा हरि पालनैं झुलावै..........................................सो नँद-भामिनि पावै॥

हिंदी साहित्य के वात्सल्य रस सम्राट महाकवि सूरदास कि उपर्युक्त बाद में माँ यशोदा बाल कृष्ण को पालने में जुलाकर सुलाने का यत्न कर रही है। यशोदा बाल कृष्ण को पालने में झुला रही है इस प्रकार वे उन्हें सुलाने का यत्न कर रही है। वे कृष्णा को हिलाते हैं, दुलार कर रही हैं, पुचकारती है और मधुर स्वर में कुछ गा भी रही है। यशोदा कहती है की हे 'निंद्रा' तुझे कृष्णा बुला रहे है, तू जल्दी आकर उसे क्यू नहीं सुलाती? पालने में झूलने हुए कृष्णा कभी तो अपने अपनी पलके बंद कर लेते है, पर कभी उनके होंठो पुनः फड़कने लगते है। यशोदा को जब ऐसा लगा की कृष्णा सो गए है, तो वह चुप हो जाती है तथा संकेतों के माध्यम से सबको चुप रहने का संकेत करती है कि  कहीं सोते हुए कृष्णा जग न जाएँ। जैसे ही यशोदा गाना बंद कर देती है, वासे ही कृष्णा अकुलाने लगते है और यशोदा पुनः गाना (लोरी) प्रारंभ कर देती है। सूरदास जी कहते है की गो सुख देवताओं और मुनियों  के लिए भी दुर्लभ है, वह नंद की स्त्री यशोदा को प्राप्त है। भाव यह है की कृष्णा को पालने के सुलाने का प्रयत्न  करना तथा उनकी चेष्ठाओ का अवलोकन करना केवल यशोदा के भाग्य में ही है।

खीझत जात माखन खात।
अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात॥
कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात।
कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात॥
कबहुं तोतर बोल बोलत कबहुं बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा निमिष तजत न मात॥

खीझत जात माखन खात..........................................निमिष तजत न मात॥

महाकवि सूरदास के उपर्युक्त पद  में कृष्णा के मक्खन खाने का वर्णन किया गया है। कृष्णा मचलते,  हुए चिड़चिड़ाते हुए मक्खन खा रहे हैं। उन्हें नींद आ रही है इसलिए उनकी आँखें लाल और उनकी भावे टेढ़ी हो रही रही है। वे बार-बार जम्हाई ले रहे हैं। कभी वह घुटनों के बल चलने लगते हैं और ऐसा करते समय उनके पैरों में बाँधी पौंजनी  के घुँघरू झन-झन की आवाज़ करते है। बालकृष्ण का पूरा शरीर धूल में सना हुआ है। कभी वे झुककर माँ यशोदा के बाल खींचने लगते है, तो कभी उनके आँखों में आँसू  आ जाते है। कभी वे अपनी तोतली आवाज़ में कुछ बोलने लगते है, तो कभी नंद बाबा को 'तात' कहकर पुकारते है। सूरदास जी कहते हैं कि बालकृष्णा की शोभा को देख कर यशोदा एक पल के लिए भी उन्हें अपने से अलग नहीं होने देती।

मैया मेरी,चंद्र खिलौना लैहों।।
धौरी को पय पान न करिहौ उर पर,बेनी सिर न गुथैहौं।
मोतिन माल न धरिहौ उर पर झुंगली कंठ न लैहौं।।
जैहों लोट अबहिं धरनी पर, तेरी गोद न एहौं।
लाल कहै हों नंद बबा को, तेरो सुत न कहैहौं।।
कान लाय कछु कहत जसोदा, दाउहिं नाहिं सुनैहौं।
चंदा हूँ ते अति सुंदर तोहिं,नवल दुलहिया ब्यैहौं।।
तेरी सौं मेरी सुन मैया, अबहीं ब्याहन जैहौं।
‘सूरदास’ सब सखा बराती, नूतन मंगल गैहौं।

मैया मेरी,चंद्र खिलौना लैहों..........................................नूतन मंगल गैहौं।

उपर्युक्त पद  में सूरदास जी बालकृष्ण की चंद्रमा रुपये खिलौना लेने की हठ का चित्रण कर रहे हैं। बालकृष्णा ने हठ की है कि उन्हें खिलौने के रूप में चंद्रमा चाहिए अर्थात् वे चंद्रमा से खिलौने के रूप मैं खेलना चाहते हैं। अपनी ज़िद पूरी करवाने के लिए वे अपनी माँ यशोदा को तरह-तरह के धमकियां दे रहे हैं। वे कहते हैं यदि मुझे चंद्र  खिलाना नहीं मिला तो मैं सफ़ेद गाय का दूध नहीं पिऊँगा, मैं अपने बालों भी नहीं गूँथवाऊँगा, मोतियों की माला नहीं पहनूँगा तथा झंगोला भी नहीं पहनूँगा। वे कहते है की ही माँ, यदि मुझे चंद्र खिलौना नहीं मिला तो मैं भी अभी ज़मीन पर लेट जाऊँगा, तुम्हारी गोद में नहीं आऊँगा,  मैं तेरा पुत्र नहीं कहलाऊँगा और नंद बाबा का पुत्र कहलाऊँगा। कृष्णा की इस धमकियों को सुनकर  माँ यशोदा कृष्ण के कार मैं कुछ कहती है जिससे की उस बात को बाल बलराम न  सुन सकें। वह उनके कान में कहती है कि वे चंद्रमा से भी सुंदर नई नवेली दुल्हन के साथ उसका विवाह करवाएगी। माँ की बात सुनकर कृष्ण बोले हैं हे माँ  तेरी सौगंध मैं अभी भी विवाह करने जाऊँगा। सूरदास जी कहते हैं कि  इस सारे सखा बराती होंगे और वे मंगल गीत गाएँगे।