मेघ आए कविता का भावार्थ/व्याख्या │ Sahitya Sagar - ICSE

मेघ आए व्याख्या, मेघ आए भावार्थ, मेघ आए पंक्तियों अर्थ, megh aaye summary, megh aaye kabita ka bhawarth, megh aaye kabita ka wykhya
megh-aaye-poem-summary

मेघ आए कवि परिचय, मेघ आए भावार्थ, मेघ आए भावार्थ, मेघ आए पंक्तियों अर्थ, megh aaye  summary, megh aaye kabita ka bhawarth, megh aaye kabita ka wykhya, megh aaye kavita ka aarth, megh aaye ka aarth, bhawarht. Sahitya sagar ICSE, saakhi workbook answer, megh aaye question answer for the board, megh aaye sahitya sagar workbook answers class 9, 10 icse

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के

मेघ आए बड़े..............बन-ठन के सँवर के

भावार्थ–श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए' में मेघों के आगमन के माध्यम से गाँव में दामाद (पाहुन) आने के उल्लास का वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि आकाश में बादल पश्चात घिर आए हैं। बादलों को देखकर कवि को ऐसा लगा जैसे गाँव में शहर से किसी का दामाद (पाहुन) बन ठनकर आया है। गाँव में शहर से जब कोई दामाद बन ठनकर आता है तो उसे देखने के लोगों में प्रसन्नता भर जाती है। बादलों के आगमन की सूचना देने के लिए पुरवाई हवा नाचती गाती चल पड़ी है। लोगों के घरों के दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगी अर्थात् लोग भी मेघ रूपी दामाद को देखने को आतुर हैं। मेघ बहुत बन ठन के शहरी मेहमान (दामाद) की तरह आ रहे हैं।

विशेष : गाँवों में शहर से जब कोई मेहमान सज-धजकर आता है तो पूरे गाँव में उल्लास का वातावरण छा जाता है। दामाद की सूचना देने वाला अत्यंत उत्साह से उसके आगमन की सूचना देता है, उसी प्रकार पूरब से चलने वाली ठंडी हवा भी बादलों के आगमन की सूचना देती है। वह अत्यंत प्रसन्न होकर नाचती–गाती चलती है। उसे नाचते-गाते देखने के लिए लोग अपने घरों के दरवाज़े और खिड़कियाँ खोल देते हैं।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे..................बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित 'मेघ आए' शीर्षक कविता से ली गई उपर्युक्त पंक्तियों में आकाश में बादलों के घिर आने के माध्यम से किसी शहर से गाँव में आए मेहमान का चित्रण किया गया है। जब मेघ आ गए तो पेड़ों ने गरदन उचकाकर, झुककर उन्हें देखा। भाव यह है कि हवा चलने से पेड़ों के झुकने से ऐसा प्रतीत होता है मानो पेड़ मेघों के आगमन पर उन्हें गरदन झुकाकर अत्यंत उल्लास एवं उत्सुकता से देख रहे हों। धीरे-धीरे हवा आँधी में बदल गई और चारों ओर धूल उड़ने लगी। आँधी के चलने को देखकर ऐसा लग रहा है मानो गाँव की युवती मेहमान को आते देखकर अपना लहँगा समेटकर भागी चली जा रही है। बादलों के घिर आने पर नदी भी ठिठक गई और उन्हें देखने लगी।

विशेष: गाँव में शहर से किसी मेहमान (दामाद) के बन-उनकर, सज-सँवरकर आने पर जिस प्रकार गाँव के लोग उसे झुक झुककर प्रणाम करते हैं, वैसे ही पेड़ भी मेघों को गरदन उचकाकर और झुक-झुककर देख रहे हैं। आँधी को देखकर कवि कल्पना करता है कि उसका तेज़ चलना वैसा ही है जैसे गाँव की किसी युवती का गाँव में आए मेहमान को देखकर अपना लहँगा समेटकर भागी चले जाना। नदी के ठिठकने से कवि का आशय है कि गाँव की वधुओं ने घूँघट कर लिया और वे मेहमान को देखने लगीं।

बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

बूढ़े पीपल ने................बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ– बूढ़े पीपल ने मेघों का स्वागत किया। लता को ऐसी युवती रूप दिखाया गया जिसका पति उस से एक वर्ष बाद मिलने आया हो। इसी प्रकार तालाब भी मेघों के आगमन पर उल्लसित है, क्युकी मेघों के आने से उसमें पानी भरेगा.

विशेष : जब गाँवों कोई मेहमान (दामाद) आता है, घर का बड़ा-बुजुर्ग उसका स्वागत करता अभिवादन करता है, उसी प्रकार पीपल ने भी मेघों का स्वागत किया। गाँवों पत्नी अपने पति के सामने नम नहीं आती इसीलिए कवि ने कल्पना की है कि लता किवाड़ की ओट में खड़ी होकर अपने पति को एक वर्ष बाद आने का उलाहना देती है। दामाद के चरण धोने का भी रिवाज है। कवि ने कल्पना की है कि तालाब खुशी-खुशी परात में पानी भरकर लाया जिससे कि मेहमान के चरण धोए जा सकें। पीपल के पेड़ की आयु बहुत लंबी होती है इसीलिए उसके लिए कवि ने 'बूढ़े' शब्द का प्रयोग किया गया है।

क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

क्षितिज अटारी............बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता 'मेघ आए' से उद्धृत की गई हैं। इन पंक्तियों में मेघों के आगमन का शब्द चित्र अंकित किया गया है। आकाश में बादल छा गए। क्षितिज पर गहरे बादलों में बिजली चमकी और वर्षा शुरू हो गई। कवि ने इस संबंध में कल्पना की है कि मेहमान और उसकी पत्नी का मिलन हो गया। पत्नी ने पहले तो उसे एक वर्ष बाद आने और एक वर्ष बाद उसकी सुध लेने का उलाहना दिया था, पर जब दोनों का मिलन हो गया तो बिजली-सी कौंध गई और पत्नी के मन में जो भ्रम था, वह दूर हो गया, उसके भ्रम की गाँठ खुल गई अर्थात् उसके मन की सारी शंकाएँ दूर हो गईं। जब पति-पत्नी का मिलन हुआ तो मिलन के अश्रु बह निकले तथा एक वर्ष के वियोग का बाँध भी मानो टूट गया। उसने मेहमान से क्षमा याचना की।

विशेष : उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने पति-पत्नी के मिलने का सुंदर चित्र अंकित किया है। मिलने से पूर्व पत्नी के हृदय में एक वर्ष बाद आने वाले पति के प्रति जो उलाहना एवं शिकायत थी, वह मिलन होते ही दूर हो गई। मेघों से वर्षा की झड़ी लगने को कवि ने आनंद एवं मिलन के अश्रु कहा है। बादलों का जल इस प्रकार बरसने लगा जैसे किसी बाँध के टूटने पर पानी तेज़ प्रवाह से बहने लगता हो। 'क्षितिज' को 'अटारी' के रूप में चित्रित किया गया है। भाव यह है कि पति-पत्नी का मिलन क्षितिज रूपी अटारी पर हुआ।

Post a Comment

Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.